जानिए निर्जला एकादशी व्रत का महत्व
सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी का सर्वाधिक महात्म्य है । इसे करने से उपासक को आरोग्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है । साथ ही उन्हें अकाल मृत्यु के भय से भी मुक्ति मिलती है ।
जेष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी अथवा भीमसेनी एकादशी कहते हैं। एकादशी व्रत में स्नान और आचमन के अलावा जरा सा भी जल ग्रहण नहीं किया जाता है, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान इत्यादि कर विप्रों को यथा योग्य दान देने और भोजन कराने के उपरांत ही स्वयं भोजन करना चाहिए। कहते हैं, निर्जला एकादशी का व्रत रखने से समूची एकादशियों के व्रतों के फल की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।
पुराणों में एकादशी व्रत का फल शरीर आरोग्य, दीर्घायु, संपूर्णसुख-भोग और मोक्ष का फल कहा गया है। यू तो वर्ष में 24 एकादशियां आती है किंतु इन सब में जेष्ठ शुक्ल एकादशी सबसे बढ़कर फल देने वाली समझी जाती है क्योंकि इस एक एकादशी का व्रत रखने से जितनी भी एकादशी है उनका भी फल प्राप्त होता है।
हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में कुल २४ एकादशियां होती हैं । निर्जला एकादशी का महत्व सर्वाधिक माना गया है । जो व्यक्ति साल में केवल एक यही एकादशी करते हैं, उन्हें सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है । यह एकादशी व्रत स्वास्थ्य, दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति के लिए की जाती है । इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है । निर्जला एकादशी के महत्व का वर्णन करते हुए महामुनी वेदव्यास जी ने भीम से कहा है, ‘हे! कौन्तेय भगवान विष्णु स्वयं कहते हैं कि यह एकादशी परम पावनी कल्याणकारी महापातकों को नष्ट करने वाली तथा धन-धान्य, सुख-संपत्ति, संतान, आयु, आरोग्य में वृद्धि करने वाली तथा असंख्य उत्तम फलों को प्रदान करने वाली है । इस दिन किए गए पूजा-पाठ, जप-तप, यज्ञ का अक्षुण्ण फल मनुष्यों को प्राप्त होता है । जो भी मनुष्य इस व्रत के दिन जितेंद्रिय होकर निराहार रहकर एकमात्र मेरी शरण में आता है, वह समस्त चिंताओं, कष्टों, आपदाओं से मुक्त हो जाता है । इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि इसके अतिरिक्त अंत समय में उसे यमदूतों तथा अकाल मृत्यु का भय भी नहीं होता । साथ ही सौम्य स्वरूप पीतांबर धारी मेरे दूत उन वैष्णवो को मेरे धाम ले आते हैं, जहां वह मेरा सानिध्य प्राप्त कर मुझ परमतत्व में विश्रांति पाते हैं । तथा आवागमन के बंधन से मुक्त हो जाते हैं । जो मनुष्य इस दिन जल के नियमों का पालन करते हैं, उन्हें हर प्रहर करोड़ों स्वर्णदान के समान फल प्राप्त होता है तथा कथा श्रवण से चतुर्दशी युक्त अमावस्या को सूर्य ग्रहण के समय श्राद्ध करने के समान अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है ।”
निर्जला एकादशी व्रत
प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर सुद्ध स्वेत वस्त्र धारण कर पूर्वा विमुख बैठकर अपने सम्मुख चौकी रख कर उसपर पीला वस्त्र बिछाकर जल में शयन करते हुए शंख, चक्र, गदा, पदम् से विभूषित भगवान श्री हरि विष्णु का चित्र स्थापित करें तथा ज्योति प्रज्ज्वलित कर मनसा वाचा कर्मणा व्रत का संकल्प करना चाहिए । निर्जला एकादशी का व्रत अत्यंत संयम साध्य है। इस व्रत में जलयुक्त कलश, अन्न, वस्त्र, छतरी, फल और स्वर्ण देने का विधान है।
निर्जला एकादशी पूजन विधि
एकादशी के दिन सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा करें। इसके पश्चात ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। इस दिन व्रत करने वालों को चाहिए कि वह जल से कलश भरें और सफेद वस्त्र का उस पर ढक कर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें। इस एकादशी का व्रत करके यथा सामर्थ्य अन्न, जल, वस्त्र, आसन, छतरी, पंखी, फल आदि का दान करना चाहिए। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशी का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी व्रत करने से अन्य २३ एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाएगा तथा संपूर्ण एकादशी की पुण्य का लाभ भी मिलेगा।
मंत्र
मय कायिक वाचिक, मानसिक, सांसर्गिक पातक उपपातक दुरित क्षयपूर्वक श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थ शुभ फालोत्तरोत्तर वृद्धयर्थ श्री हरि विष्णु प्रीति कामनया निर्जला एकादशी व्रतं अहं करिष्ये ।
तत्पश्चात यथा विधि ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए धूप-दीप, अक्षत, केसर, ऋतु फल-फूल, नैवेद्य अर्पित करते हुए पूर्ण ध्यान मग्न होकर पूजा स्तुति करनी चाहिए । तत्पश्चात एकादशी व्रत का श्रवण, भजन, कीर्तन, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए । फिर द्वादशी को पुनः स्नान आदि से निवृत होकर पूजन आरती करके जल शक्कर से युक्त घड़े का दान करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है ।
दान मंत्र
देव देव हृषिकेश संसारावितारक । उद्कुंभ प्रदानेन नय मां परमां गतिय । हे संसार सागर से तारने वाले देवाधिदेव हृषीकेश इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइए । इसके बाद व्रत तोड़े ।
सर्व पाप पदम
जो इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर अविनाशी पद प्राप्त करता है। भक्ति भाव से कथा श्रवण करते हुए भगवान का कीर्तन करना चाहिए।
नैवेद्य
आप अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह क़े नैवेद्य तो चढ़ाते ही होंगे। लेकिन क्या आपको मालूम है कि नैवेद्य के रूप में कौन सी वस्तु किस भगवान को प्रिय है। प्रत्येक देवता का नैवेद्य निर्धारित होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप इन्ही वस्तुओं का भोग लगाएं। भगवान श्रद्धा को ज्यादा महत्व देते हैं। लेकिन जैसे आप अपना मनपसंद पदार्थ देखकर खुश होते हैं इसी प्रकार देवता भी मनपसंद नैवेद्य देखकर खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। प्रिय पदार्थ देवता को आकृष्ट करते हैं और वह नैवेद्य अर्थात प्रसाद जब हम ग्रहण करते हैं तो उसमें विद्यमान शक्ति हमें प्राप्त होती है। विष्णु जी को खीर या सूजी का हलवा, गणेश जी को मोदक या लड्डू, देवी को पायस, श्री कृष्ण जी को माखन-मिश्री, शिव को भांग, अन्नपूर्णा को अन से बने पदार्थ और लक्ष्मी जी को सफेद रंग के मिष्ठान बहुत पसंद हैं।